ईशदूत मुहम्मद साहब का हिंद के प्रति व्यवहार

ईशदूत मुहम्मद साहब का हिंद के प्रति व्यवहार

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हिंद बिनत उतबा वास्तव में ईशदूत मुहम्मद साहब और उनके मिशन की प्रमुख दुश्मनों में से एक थीं, विशेष रूप से इस्लाम के शुरुआती वर्षों में। उन्होंने ईशदूत मुहम्मद के विरोध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और युद्ध-ए-उहुद के दौरान उनके चाचा हज़रत हम्जा (RA) की निर्मम हत्या में भी उनका हाथ था। हज़रत हम्जा को एक एथियोपियाई गुलाम ने मारा था, और हिंद ने इस हत्या को उकसाया था। उन्होंने हज़रत हम्जा के शव को भी अपवित्र किया, जिससे उनके खिलाफ दुश्मनी और बढ़ गई।

जब ईशदूत मुहम्मद साहबऔर उनके अनुयायी अंततः मक्का पर विजय प्राप्त करते हैं, तो उन सभी को डर था जो इस्लाम के विरोधी थे, और यह उम्मीद की जा रही थी कि हिंद को उनके अपराधों के लिए सजा दी जाएगी, जिसमें हज़रत हम्जा की हत्या में उनकी भूमिका भी शामिल थी।

हालांकि, जब ईशदूत मुहम्मद साहब मक्का में प्रवेश करते हैं, तो उन्होंने उन सभी को माफ कर दिया जो उनके विरोधी थे, जिसमें हिंद भी शामिल थी। यह माफी ईशदूत की व्यापक शिक्षा के अनुरूप थी, जिसमें दया और महानता का पालन किया जाता था।

हिंद ने, ईशदूत की दया और महानता को समझते हुए, अंततः इस्लाम को स्वीकार किया और वह एक मुसलमान बन गई। यह ईशदूत की माफी का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है, और यह दर्शाता है कि उन्होंने अपने सबसे कठोर दुश्मनों को भी माफ किया। मौत की सजा या प्रतिशोध के बजाय, ईशदूत की दया ने कई लोगों को इस्लाम में धर्म परिवर्तन करने के लिए प्रेरित किया, जिनमें हिंद भी शामिल थी।

यह समझना आवश्यक है कि हिंद की माफी ईशदूत की दया और सुलह पर जोर देने का एक उदाहरण है।

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