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मैं विज्ञान में विश्वास करता हूँ। मुझे धर्म अथवा ईश्वर की क्या आवश्यकता है?

मैं विज्ञान में विश्वास करता हूँ। मुझे धर्म अथवा ईश्वर की क्या आवश्यकता है? ****************************************************** ईश्वर के बनाए नियम को जब हम खोज लेते हैं तो उसे विज्ञान कहते है। जितना हम इन नियमों पर मनन करते हैं - उतना ही हम मानवीय जीवन को बेहतर बना पाते हैं। विज्ञान हमारे दैनिक जीवन मे बहुत सहायक है। हमारी अलार्म घड़ी से चिकित्सीय दवाओं तक, सब विज्ञान ही है। वहीं दूसरी ओर विज्ञान की भी अपनी सीमाएं हैं। यह विज्ञान के साथ बड़ा अन्याय होगा कि हम जीवन के हर क्षेत्र में उससे दिशा निर्देश की अपेक्षा रखें। अपितु समग्र मानवीय ज्ञान के प्रकाश में यह हमसे अपेक्षित है कि हम विज्ञान की दिशा का निर्धारण करें। यह विज्ञान का स्वभाव/उद्देश्य नहीं कि वह हमें मानसिक और भावनात्मक रूप से एक बेहतर मनुष्य बनाने की दिशा में योगदान दे। उदाहरण स्वरूप : विज्ञान, सदाचार,  नैतिक मूल्यों, अथवा सामाजिक व्यवहार को विषय नहीं बनाता। माता-पिता का आज्ञापालन, पति/पत्नी में प्रेम, बच्चों का लालन-पालन, असहाय की सहायता को प्रेरित करना - ये सब विज्ञान के विषय-क्षेत्र में नहीं है। इसी प्रकार, व

सूर्य एवं चन्द्रमा हमें लाभ देते हैं तो क्या हम उनकी उपासना कर सकते हैं?

सूर्य एवं चन्द्रमा हमें लाभ देते हैं तो क्या हम उनकी उपासना कर सकते हैं? *************************************** विभिन्न परिस्थितियों के लिए विभिन्न शब्द एवं विभिन्न व्यवहारों का चयन होता है। सम्मान, प्रेम, स्नेह, समर्पण, प्रशंसा, श्रद्धा - आदि शब्दों का विभिन्न परिस्थितियों में प्रयोग होता है। हम अपने माता पिता से प्रेम और सम्मान करते हैं। किसी क्रिकेटर अथवा किसी साहसी व्यक्ति की प्रशंसा की जाती है। परन्तु यह लोग हमारे माता-पिता का जगह नहीं ले सकते। हम इनसे उस प्रकार प्रेम नही कर सकते जैसे अपने माता-पिता से करते हैं। हम अपने पति/पत्नी से प्रेम करते हैं परन्तु वैसा ही प्रेम हम पड़ोसी से नही करते हैं। हम ईश्वर के समक्ष समर्पित होते हैं। हमारा सम्पूर्ण जीवन ईश्वर के मार्गदर्शन में व्यतीत होना चाहिए। ईश्वर का जगह कोई और नहीं ले सकता। हम पशुओं के प्रति भी स्नेह की भावना रखते हैं परन्तु यह स्नेह   हमारे सन्तान के प्रति स्नेह से निश्चित रूप से भिन्न होता है। हम फूलों, पक्षियों, आकाश, सागर, पर्वत, सूर्य, चंद्रमा, आदि की सुंदरता की प्रशंसा करते हैं। यह सब प्रमाण है एक महा

क्या ईश्वर ने मानवजाति को विभिन्न धर्मों में विभाजित किया?

क्या ईश्वर ने मानवजाति को विभिन्न धर्मों में विभाजित किया? ************************************************* प्रायः, ये कहा जाता है की ईश्वर ने कई धर्म बनाए हैं, हम किसी का भी अनुसरण कर लें, ये हमारे लिए पर्याप्त है। परन्तु, हम ये भी देखते हैं कि विभिन्न धर्मों में परस्पर विरोधी मान्यताएं भी है। क्या यह सम्भव है, कि हमारा सृष्टा ... 👉 मुसलमानों को यह बताए कि ईश्वर 'एक' है, ना कोई उसके तुल्य है और ना उसकी कोई प्रतिमा है ? 👉 और वही ईश्वर हिन्दुओ को कहे कि ईश्वर बहुत सारे हैं, और उसकी उपासना के बजाए मूर्तियों, पशुओं, सूर्य, चन्द्र, आदि कि उपासना की जाए ? 👉वही परमेश्वर ईसाइयों को कहे कि ईश्वर 3 में 1 है और ईश्वर का पुत्र भी है ? 👉 और वही अल्लाह नास्तिकों को बताए कि ईश्वर का अस्तित्व ही नही है ? क्या यह तर्क संगत लगता है ? ये सारी बातें एक साथ सही नहीं हो सकती।  हम मनुष्य, जन्म के आधार पर शारिरिक रूप से और आवश्यकताओं में समान हैं। हममें से कोई अपनी इच्छा से, इस धरती पर नही आया है। बुद्धि और विवेक कहते हैं की इस ब्रह्माण्ड का रचइता और पालनहार एक ही है। ज