क्या ईश्वर ने मानवजाति को विभिन्न धर्मों में विभाजित किया?

क्या ईश्वर ने मानवजाति को विभिन्न धर्मों में विभाजित किया?

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प्रायः, ये कहा जाता है की ईश्वर ने कई धर्म बनाए हैं, हम किसी का भी अनुसरण कर लें, ये हमारे लिए पर्याप्त है।

परन्तु, हम ये भी देखते हैं कि विभिन्न धर्मों में परस्पर विरोधी मान्यताएं भी है।

क्या यह सम्भव है, कि हमारा सृष्टा ...

👉 मुसलमानों को यह बताए कि ईश्वर 'एक' है, ना कोई उसके तुल्य है और ना उसकी कोई प्रतिमा है ?
👉 और वही ईश्वर हिन्दुओ को कहे कि ईश्वर बहुत सारे हैं, और उसकी उपासना के बजाए मूर्तियों, पशुओं, सूर्य, चन्द्र, आदि कि उपासना की जाए ?
👉वही परमेश्वर ईसाइयों को कहे कि ईश्वर 3 में 1 है और ईश्वर का पुत्र भी है ?
👉 और वही अल्लाह नास्तिकों को बताए कि ईश्वर का अस्तित्व ही नही है ?

क्या यह तर्क संगत लगता है ?
ये सारी बातें एक साथ सही नहीं हो सकती। 

हम मनुष्य, जन्म के आधार पर शारिरिक रूप से और आवश्यकताओं में समान हैं।
हममें से कोई अपनी इच्छा से, इस धरती पर नही आया है।

बुद्धि और विवेक कहते हैं की इस ब्रह्माण्ड का रचइता और पालनहार एक ही है।

जब ईश्वर एक है, तो स्वाभाविक है कि उस "एक" ईश्वर का "मार्गदर्शन" मनुष्य के लिए समान होना चाहिए, चाहे वो किसी समुदाय, संस्कृति, देश या क्षेत्र का हो।

हम जानते हैं कि ईश्वर ने अपना सन्देश और मार्गदर्शन हमतक विभिन्न भाषा और संस्कृति में भेजा।

संदेशवाहको की श्रंखला आदम (जिन्हें भारतीय परम्परा में स्वयं भू मनु के रूप में जाना जाता है) से आरम्भ होकर अंतिम ईशदूत-मोहम्मद पर समाप्त होती है।

प्रथम ईशदूत से अंतिम तक, ईश्वर का धर्म भी "एक" और समान रहा।

इसी "एक" धर्म को संस्कृत में "सनातन" और अरबी में "इस्लाम" कहते है ।

एक ईश्वर, एक धर्म, एक मानवता।

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