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क्या यह पूर्वनिर्धारित है कि कौन स्वर्ग अथवा नरक में प्रविष्ट होगा?

क्या ईश्वर की ओर से यह पूर्वनिर्धारित है कि कौन स्वर्ग अथवा नरक में प्रविष्ट होगा? पवित्र कुरआन 7:179 विश्लेषण खुर्शीद इमाम  ******************************************** अल-आराफ़ 7:179 "निश्चित रूप से हमने जिन्न और मनुष्यों की बहुसंख्या नरक के लिए पैदा की है। उनको बुद्धि दी है पर वो सोचते नही, उनको आंखें दी हैं पर वो देखते नही, उनको कान दिए पर वो (सत्य) सुनते नही। वह मवेशियों जैसे है; अपितु वह उस भी निकृष्ट हैं! ये बेपरवाह लोग हैं। प्रश्नकर्ता : ईश्वर कहता है उसने कुछ जिन्न और मनुष्य नरक के लिए ही बनाए हैं, तो क्या ईश्वर की ओर से यह पूर्वनिर्धारित है कि कौन स्वर्ग अथवा नरक में प्रविष्ट होगा ? ********* हमे सूरहअल-आराफ़ की कुछ आयात पढ़नी चाहिए: 180- और, ईश्वर के ही सर्वोत्तम नाम है अतः उसे ही पुकारो, और उन्हें अकेला छोड़ दो जो उसके नामों की पवित्रता का उल्लंघन करते हैं: उन्हें उनके कर्मों का फल (बदला) मिलेगा । 181- और वो लोग जिन्हें हमने सत्य के मार्गदर्शन हेतु उत्पन्न किया है, वह न्याय करेंगे। 182- और वह, जो हमारे संदेश को नकारते हैं , उनको हम अंशतः (विनाश के) स

किस न्यूनतम दूरी की यात्रा पर, व्रत(रोज़ा) रखना वैकल्पिक है?

किस न्यूनतम दूरी की यात्रा पर, व्रत(रोज़ा) रखना वैकल्पिक है? खुर्शीद इमाम  ******************************************** यात्रा के दौरान, पवित्र कुरआन, व्रत (रोज़ा) को वैकल्पिक घोषित करता है। यात्रा के दौरान रोज़ा न रखना बेहतर माना गया है। प्रश्न यह है कि किस न्यूनतम दूरी की यात्रा में यह विकल्प उपलब्ध होता है? विद्वानों का मानना है कि यह दूरी 48 मील अर्थात 77 किलोमीटर है। इस आधार पर निम्न दो परिदृश्य पर ध्यान दें: क) मैं एक निर्धन श्रमिक हूँ, रमज़ान का महीना है और मुझे सायकिल पर एक भारी बोझ लेकर 40 किलोमीटर का सफर करना है। भारी बोझ और गरम मौसम के कारण, यह एक अत्यंत थकाने वाली यात्रा होगी। परन्तु मुझे रोज़ा रखने से छूट नही मिल सकती क्योंकि मैं 77 किलोमीटर की यात्रा नही कर रहा। ख) द्वितीय परिदृश्य में मैं एक धनी व्यक्ति हूँ, मुझे दिल्ली में एक संगोष्ठी में सम्मिलित होना है। में बंगलोर से फ्लाइट लेकर 2 घंटे में दिल्ली पहुँच जाऊंगा। एयरपोर्ट से AC कार से संगोष्ठी हॉल जो स्वयं वातानुकूलित है, में पहुँच जाऊंगा। रमज़ान का माह है परंतु में रोज़ा नही रखूंगा क्योंकि मेरी यात्रा 77 किमी स

क्या परलोक का जीवन तर्क संगत है?

क्या परलोक का जीवन तर्क संगत है? खुर्शीद इमाम  ******************************************** "मैं मानवता के धर्म में विश्वास रखता हूँ।" "सर्वप्रथम एक बेहतर मनुष्य बनो, फिर..." "किसने स्वर्ग/नरक देखा है, तो हम क्यों विश्वास करें" ............................................ जब भी परलोक/आस्था/ईश्वर आदि के संबंध में वार्ता होती है, हम इस प्रकार के तर्क सुनते हैं। जो लोग इस प्रकार के तर्क प्रस्तुत करते हैं, संभवतः उनके समक्ष ईश्वर और परलोक की सच्ची अवधारणा नही रखी गई होगी। जब भी किसी प्राकृतिक अथवा मानव निर्मित वस्तु को, ईश्वर के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, एक तार्किक मस्तिष्क, ईश्वर के संबंध में इस प्रकार के विश्वास/आस्था को स्वीकार नही कर पाता। " मैं  मानवता में विश्वास रखता हूँ ।" मानवता का क्या तातपर्य है? यह निर्णय कौन करेगा कि कौन कृत्य मानवीय है या अमानवीय?  कौन नैतिक/अनैतिक के मापदंड तय करेगा? एक डाकू समझता है कि लोगों को लूटकर वह स्वयं और अपने परिवार के लिए वैधानिक अर्जन कर रहा है, परंतु लूटने वाला इसके विपरीत विचा