क्या परलोक का जीवन तर्क संगत है?

क्या परलोक का जीवन तर्क संगत है?

खुर्शीद इमाम 
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"मैं मानवता के धर्म में विश्वास रखता हूँ।"

"सर्वप्रथम एक बेहतर मनुष्य बनो, फिर..."

"किसने स्वर्ग/नरक देखा है, तो हम क्यों विश्वास करें"
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जब भी परलोक/आस्था/ईश्वर आदि के संबंध में वार्ता होती है, हम इस प्रकार के तर्क सुनते हैं।

जो लोग इस प्रकार के तर्क प्रस्तुत करते हैं, संभवतः उनके समक्ष ईश्वर और परलोक की सच्ची अवधारणा नही रखी गई होगी। जब भी किसी प्राकृतिक अथवा मानव निर्मित वस्तु को, ईश्वर के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, एक तार्किक मस्तिष्क, ईश्वर के संबंध में इस प्रकार के विश्वास/आस्था को स्वीकार नही कर पाता।

"मैं  मानवता में विश्वास रखता हूँ।" मानवता का क्या तातपर्य है?

यह निर्णय कौन करेगा कि कौन कृत्य मानवीय है या अमानवीय?  कौन नैतिक/अनैतिक के मापदंड तय करेगा?

एक डाकू समझता है कि लोगों को लूटकर वह स्वयं और अपने परिवार के लिए वैधानिक अर्जन कर रहा है, परंतु लूटने वाला इसके विपरीत विचार रखेगा।

एक के लिए जो नैतिक हो, शायद वह दूसरे के लिए अनैतिक हो। दोनों पक्ष अपने कृत्यों को न्यायपूर्ण और मानवीय मानते हों।

एक पक्ष के लिए जो मानवीय हो, सम्भव है कि दूसरे के लिए वह अमानवीय हो। एक क्षेत्र में कोई कार्य वैधानिक हो, दूसरे में वही कृत्य दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता हो। अपराधिओं, भू-माफियाओं, हत्यारों आदि को अपने कृत्यों में संभवतः कोई बुराई न दिखती हो, उनको शायद यह कार्य अपने अस्तित्व के लिए अनिवार्य लगते हों। जबकि पीड़ित व्यक्ति न्याय के लिए गुहार लगता हो, की उसके साथ अन्याय हुआ है।

अतः प्रश्न यह है कि उचित और अनुचित को पृथक करने वाली रेखा कौन खीचेगा?

बुद्धि और विवेक कहते हैं कि मानवीय/अमानवीय, नैतिक/अनैतिक को केवल वही परिभाषित करने का अधिकार रखता है जो मानव से ऊपर हो, मानवता को बनाने वाला हो - वह जो पूर्ण निष्पक्ष और न्यायप्रिय हो, वह जो मानवीय त्रुटियों से मुक्त हो।

सर्वशक्तिमान ईष्वर ने ही अपने दिव्य अवतरणों के द्वारा नैतिकता के मापदंड निर्धारित किये है।
ईश्वर, नैतिक/मानवीय मूल्यों का परम स्रोत है और इस प्रणाली का सुचारू संचालन, उत्तरदायित्व की संकल्पना के अभाव में संभव नही है। उत्तरदायित्व की यह संकल्पना, व्यक्ति को उसके कर्मों के प्रति जवाबदेह बनाती है। उत्तरदायित्व की यही संकल्पना परलोक का जीवन है। सबको अपने कर्मों का परिणाम मिलेगा

मानवता की परिकल्पना दो चरणों मे कार्य करती है:
  • ईश्वरीय निर्देशों का पालन, ईश्वर द्वारा निर्धारित "करने वाले" एवं "ना करने वाले" कार्य।
  • परलोक में व्यक्ति को, उसके कर्मों के प्रति जवाबदेह बना कर।
उत्तरदायित्व की परिकल्पना तथा परलोक के असीमित जीवन की संकल्पना की अनुपस्थिति में मानवता/नैतिकता अर्थहीन है।

क्या पारलौकिक जीवन मिथ्या है या वास्तविकता?

जीवन का सर्वाधिक निश्चित सत्य --- मृत्यु
सर्वाधिक अनिश्चित तथ्य ----- मृत्यु कब आएगी!

युधिष्ठिर से पूछा गया -"किमाश्चर्य - अर्थात आश्चर्य क्या है " उन्होंने उत्तर दिया: अहन्यहनि भूतानि गच्छन्ति यममन्दिरम् ।  शेषा जीवितुमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम् ॥

हर रोज़ कितने हि प्राणी यममंदिर जाते हैं (मर जाते हैं), वह देखने के बावजुद अन्य प्राणी जीने की इच्छा रखते हैं, इससे बडा आश्चर्य क्या हो सकता है ?

परंतु, मृत्यु के पश्चात क्या होगा? मृत्यु के पश्चात के जीवन अथवा परलोक जीवन के विषय मे लोगों के विभिन्न मत हैं।

--श्रीमान 'क' : आवागमन (विभिन्न योनियों में जन्म की पुनरावृत्ति) के सिद्धांत में विश्वास है। मानव "जीवन-मृत्यु-जीवन-मृत्यु" के चक्र को लाखों बार प्राप्त करता है।

—श्रीमान 'ख' : मृत्यु उपरांत पुनः जीवित किये जाने और न्याय के दिन(अपने कर्मों के प्रति जवाबदेही) की संकल्पना पर विश्वास करते हैं। उनका मत है कि वो आवागमन के चक्र में नही रहेंगे।

--श्रीमान 'ग' : का विश्वास है कि मृत्यु के पश्चात कुछ भी नही होगा। ना पुनः जीवित किये जाएंगे और ना परलोक का जीवन होगा।

#क्या ये संभव है कि एक साथ जीवन व्यतीत करने वाले ये 3 वयक्ति, मृत्यु के पश्चात तीन भिन्न व्यवस्थाओं को पाएंगे?

#श्रीमान "क", म्रत्यु उपरांत पशु/वनस्पति/मानव का जीवन प्राप्त करते हैं, परंतु श्रीमान "ख" एवं श्रीमान "ग" को मृत्यु उपरांत जीवन प्राप्त नही होता है। क्या यह कथानक/परिदृश्य संभव है?
असम्भव..!

मृत्यु उपरांत जो भी व्यवस्था अस्तित्व में आएगी - वह समस्त मानवों के लिए समान होगी, चाहे व्यक्ति का अपना मत कुछ भी हो।

समस्त मनुष्य का दुनिया में आने की प्रक्रिया समान है तो मृत्य उपरान्त जीवन की व्यवस्था भी एक ही होगी - यही तर्क संगत बात है।

क्या आप सहमत हैं?

प्रकृति के नियम सबके लिए समान हैं!

मृत्यु उपरांत अथवा पारलौकिक जीवन :

पारलौकिक जीवन, वह व्यवस्था है जिसमे समस्त मानव जाति को एक दिन - जिसे हम न्याय का दिन या महाप्रलय का दिन कहते हैं - पर उठाया जाएगा और प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों का हिसाब देना होगा ।

सबको अपने कर्मों का हिसाब देना होगा - चाहे वह सत्कर्म हों या दुष्कर्म।

मृत्यु उपरांत के जीवन अर्थात परलोक के जीवन मे प्रत्येक मनुष्य को पूर्ण-न्याय प्रदान किया जाएगा।

#पूर्ण न्याय की आवश्यकता:
इस धरती पर, बड़ी संख्या में मनुष्य पवित्र जीवन का निर्वाह करते हैं। वे दूसरों के प्रति उदार होते हैं, ईश्वर के प्रति समर्पित होते हैं, ईश्वर की आज्ञा का पालन करते हैं, दुष्कर्म से बचते हैं। परंतु अक्सर ऐसे मनुष्य, दूसरे मनुष्यों द्वारा विभिन्न समस्याओं में धकेल दिए जाते हैं। उनको, अकारण ही दंड अथवा आघात का भोगी बनना पड़ता है। इन भले लोग अक्सर दूसरों के द्वारा अत्याचार के पीड़ित होते हैं, और जीवन कष्टों और दुखों में व्यतीत करते हैं।

क्या आप को लगता है कि ऐसे मनुष्यों को जीवन मे कभी भी न्याय की प्राप्ति संभव है ?

इसी प्रकार हम देखते हैं कि समाज मे कुछ व्यक्ति सदैव दूसरों को दुख और धोखा देते हैं, लोगो का तिरस्कार करते हैं। परन्तु न्यायिक व्यवस्था में  अपने उच्च सम्पर्कों और प्रभाव के कारण सदैव दंड से बच जाते हैं। कदाचार और दुष्कृत्यों में लिप्त रहने के बाद भी वह न्याय की पकड़ से दूर बने रहते हैं, वह मृत्यु तक सम्पन्न और सुखी जीवन व्यतीत करते हैं। धरती की न्यायिक व्यवस्था, प्रत्येक हत्यारे, बलात्कारी, डकैत, अपराधी को दंडित करने में सक्षम नही है।

क्या इन अपराधियों को कभी अपने दुष्कमों के लिए न्यायोचित दंड प्राप्त होगा ?

वर्तमान संसार मे अत्यधिक अन्याय हो रहा है। हमारी वर्तमान व्यवस्थाएं, प्रत्येक व्यक्ति के लिए, निष्पक्ष रूप से कार्य नहीं करती हैं। बहुधा "जिसकी लाठी उसकी भैंस" का सिद्धांत ही कार्य करता है।

पूर्ण न्याय, अच्छे और बुरे मनुष्यों के लिए प्रतिक्षरत है।

व्यवहारिक समझ कहती है कि हर व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुरूप न्याय प्रदान करने हेतु व्यवस्था होनी ही चाहिए।

#मृत्यु उपरांत जीवन अथवा परलोक का जीवन।

न्याय की उक्त व्यवस्था, निम्न रूप में होगी:

  • मरतयोत्थान - न्याय के दिन पुनः जीवित किया जाना।
  • स्वर्ग - सत्कर्मी, सतात्मा के लिए पुरुस्कार का स्थान।
  • नरक - दुराचारी, अधर्मी और दुष्ट मनुष्यों के लिए दंड का स्थान।

मृत्योपरांत अथवा परलोक में न्याय कौन करेगा ?
उत्तर: हमारा रचयता/विधाता

यदि मानवजाति को मृत्युपरांत, उनके कृत्यों के प्रति जवाबदेह न बनाया गया, उनसे उनके कर्मों के संबंध में प्रश्न न किया गया, तो उसके क्या परिणाम होंगे ?

सम्पूर्ण जगत अव्यवस्था और अराजकता से भर जाएगा। कोई व्यक्ति अपने कर्मों के प्रति चिंतित ना होगा और येन केन प्रकारेण सांसारिक न्यायिक प्रणाली को गच्चा देकर दंड से बच निकलेगा।

अतः, मृत्योपरांत जीवन अथवा परलोक जीवन की संकल्पना के अभाव में मानवीयता की परिकल्पना असम्भव है।

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Enlish version: http://khurshidimam.blogspot.com/2019/04/can-there-be-humanity-without-life.html

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