कमज़ोर से ताक़तवर बनो: मुस्लिम समाज के लिए एक ज़रूरी संदेश
कमज़ोर से ताक़तवर बनो: मुस्लिम समाज के लिए एक ज़रूरी संदेश
खुर्शीद इमाम
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आज पूरी मुस्लिम दुनिया संकट में है — अफ़रा-तफ़री, बेबसी, मायूसी और खत्म न होने वाला दुख। भारत से लेकर फिलिस्तीन तक मुसलमानों की हालत बेहद दर्दनाक है। इसकी सबसे बड़ी वजह? कमज़ोरी। इस दुनिया में जहाँ ताक़त की चलती है, वहाँ हम पीछे रह गए।
जब ताक़त हासिल करने का समय था, हम दूसरी बातों में उलझे रहे। इस्लामी इतिहास की तीन बड़ी ग़लतियाँ यही थीं:
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हदीस को क़ुरान से ऊपर रखना
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दीन और दुनिया को अलग करना
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उलमा की अंधभक्ति करना
हमें बार-बार कहा गया: "तीन तरह की दुआ हमेशा क़बूल होती है..."
लेकिन अरबों मुसलमानों की दुआएं भी क्या ग़ज़ा का कत्लेआम रोक पाईं?
सोचिए! क्या हम इस्लाम को सही तरीके से समझ पाए हैं?
इन ग़लतियों ने हमें अंदर से धीरे-धीरे कमज़ोर कर दिया। और आज भी कुछ मौलवी लोग इन्हीं छोटे मुद्दों में उलझे हुए हैं — खलीफा कौन बेहतर था, अक़ीदा-अक़ीदा की बहस, पहनावे और आदतों पर बातें — जब कि उम्मत की हालत बहुत बुरी है।
दूसरी ओर कुछ तथाकथित "बुद्धिजीवी" अपने ही समाज को बुरा-भला कहते हैं और इस्राईल की तारीफ करते हैं। क्यों?
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बुरे को बुरा कहने की हिम्मत नहीं है।
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ताक़तवरों और सरकार की नज़र में अच्छा बनने की कोशिश
तो हल क्या है?
हमारी सबसे बड़ी परेशानी है — कमज़ोरी, और उसका हल है — ताक़त हासिल करना।
अगर उम्मत को फिर से उठाना है, तो ज़रूरी है:
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शिक्षा
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उद्यमिता (Entrepreneurship)
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राजनीतिक भागीदारी
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और सबसे अहम: धार्मिक सुधार
हमें इन बातों को ठीक करना होगा:
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क़ुरान को सबसे ऊपर रखना
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दीन और दुनिया को एक साथ जोड़ना
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उलमा का सम्मान ज़रूर, लेकिन अंधभक्ति नहीं
यह रास्ता लंबा है, लेकिन और कोई रास्ता नहीं है।
अब वक़्त बर्बाद मत करो — बेकार की बहसों को छोड़ो।
क़ुरान की सीधी बातें समझो, अमल करो, और ताक़तवर बनो।
उम्मत को बदलना है — और तेज़ी से।
कमज़ोर से, ताक़तवर बनो।
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