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12 रबी उल अव्वल - कुछ मुस्लिमों के लिए एक और त्योहार।

  12 रबी उल अव्वल - कुछ मुस्लिमों के लिए एक और त्योहार।    खुर्शीद इमाम  ---------------------------------- हाल के समय में, 12 रबी उल अव्वल के तौर पर पैगंबर मुहम्मद (सल्लाह हु अलैहि व सल्लम) का जन्मदिन मनाने का मामूल बड़े पॉपुलर हो गया है। कुछ लोग सामाजिक कार्य के आवेश में ये करते हैं। इस्लामी विद्वानों के बीच इसके बारे में पूरी तरह से सहमति नहीं है कि यह पैगंबर की वास्तविक जन्मतिथि है। वास्तव में - प्रमाणिक सबूत स्पष्ट रूप से सूचित करते हैं कि 12 रबी उल अव्वल पैगंबर का जन्मदिन नहीं हो सकता। सत्य बोलना इस्लाम का महत्वपूर्ण अंग है। इस्लाम झूठ बोलने और झूठ को बढ़ावा देने के सख्त खिलाफ है। हमारी जिम्मेदारी सत्य को बनाए रखने और असत्य को फैलाने से बचना है, खासकर जब यह हमारे प्यारे पैगंबर मुहम्मद (सल्लाह हु अलैहि व सल्लम) के जीवन से संबंधित होता है। परंपराओं का अनुसरण करने के बजाय, हमें ज्ञान प्राप्त करने और हमारी ऐतिहासिक घटनाओं और उनकी प्रमाणिकता के बारे में शिक्षित करने का काम करना चाहिए। झूठ को प्रमोट करना - चाहे अच्छी नियत के साथ भी किया जाए - गंभीर परिणाम दे सकता है।   एक पीढ़ी का झूट दू

अच्छाई से बुराई को दूर करो - (कुरान 41:34) ग़लत निष्कर्ष न निकालें।

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अच्छाई से बुराई को दूर करो - कुरान 41:34 - क्या यह शिर्क और कुफ्र का उत्सव मनाने को उचित ठहराती है? खुर्शीद इमाम ---------------------------------------------------------- विषय हम कुछ मुसलमानों को शिर्क और कुफ्र के त्योहारों में शामिल होते और मनाते देखते हैं। ऐसे लगभग सभी त्यौहार अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं। ज्यादातर, ये त्यौहार समाज के लिए हानिकारक होते हैं। एक मोमिन (ईश भक्त ) के रूप में, हमें इन त्योहारों से दूर रहना चाहिए और तटस्थ रहना चाहिए। हम शिर्क, कुफ्र और अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं दे सकते। क्यों? क्योंकि ये चीजें अंततः असत्य और अंधविश्वासी समाज की ओर ले जाती हैं। दुर्भाग्य से, कुछ मुसलमान ऐसे त्योहारों में शामिल होते हैं और मनाते हैं। यह दीन के अज्ञानता के कारण हो सकता है। कृपया ध्यान दें - हम इन त्योहारों की बधाई देने की बात नहीं कर रहे हैं, हम ऐसे अवसरों को मनाने या सक्रिय रूप से बढ़ावा देने की बात कर रहे हैं। जब आप इस तरह के उत्सव में शामिल होते हैं, तो यह ऐसे उत्सवों के पीछे की मान्यता को मौन स्वीकृति या पुष्टि देने जैसा होता है। ये मुसलमान अपने इस कर्म को सही ठहराने के

रमजान के बारे में भारतीयों को क्या पता होना चाहिए?

रमजान के बारे में भारतीयों को क्या पता होना चाहिए? खुर्शीद इमाम ************************************************************ अरबी कैलेंडर के अनुसार रमजान एक महीने का नाम है। यह पवित्र माह है, चारो ओर आध्यात्मिकता का वातावरण होता है। इस महीने में मुसलमान सूर्योदय से सूर्यास्त तक रोजा रखते हैं। पवित्र कुरान - ईश्वर का अंतिम ग्रंथ - इस माह में अवतरित होना आरम्भ हुआ।  उपवास के दौरान - खाना, पीना मना है, और कोई भी बुरा कार्य वर्जित है। "हे ईश्वर के विश्वासियों ! उपवास तुम्हारे लिए निर्धारित किआ गया है जैसा की तुमसे पूर्व के लोगों के लिए निर्धारित किया गया था, ताकि तुम ईश्वर के भक्त बन सको।" कुरान 2:183 पैगंबर मुहम्मद ने कहा - "वास्तव में, उपवास केवल खाने-पीने से नहीं है। बल्कि, उपवास घमंड और अश्लीलता से भी है। यदि कोई तुम्हें गाली देता है या तुम्हारे विरुद्ध मूर्खता करता है, तो कहो: वास्तव में, मैं उपवास कर रहा हूँ।" उपवास हमारे विचारों, इच्छाओं और कार्यों को नियंत्रित करने और प्रशिक्षित करने का एक माध्यम है। याद रखें: उपवास न तो भोज है और न ही भूखा रहना। ईश्वर के प्रेम

अज़ान का अर्थ

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  अज़ान का अर्थ ●  अल्लाहु अकबर, (2 बार)                     ‘अल्लाह (ईश्वर) सबसे बड़ा है।’ ●  अश्हदुअल्ला इलाह इल्ल्अल्लाह,  (2 बार)                     ‘मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह (ईश्वर) के सिवाय कोई उपास्य नहीं।’ ●  अश्हदुअन्न मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह,  (2 बार)                     ‘मैं गवाही देता हूं कि (हज़रत) मुहम्मद, अल्लाह (ईश्वर) के रसूल (दूत) हैं।’ ●  हय्या अ़लस्-सलात, (2 बार)                     ‘(लोगो) आओ नमाज़ की ओर’ ●  हय्या अ़लल-फ़लाह, (2 बार)                     ‘(लोगो) आओ सफलता की ओर’ ●  अल्लाहु अकबर  (2 बार)                     ‘अल्लाह (ईश्वर) सबसे बड़ा है।’ ●  ला इलाहा इल्लल्हा ,                     ‘ अल्लाह (ईश्वर) के सिवाय कोई पूज्य नहीं।’

हिन्दुओं के पूर्वज कौन थे ?

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हिन्दुओं के पूर्वज मुसलमान थे? *************************************************** पिछले कुछ वर्षों से भारत मे नफरत की राजनीति अपने चरम सीमा पे है। इसी का हिस्सा है एक दुष्प्रचार जिसमे भारतीय हिन्दुओं को ये बता के भ्रमित किय जा रहा है कि भारतीय मुसलमान के पूर्वज हिंदू थे। भोले भाले लोग इस विषय को आपसी नफरत का विषय बना लेते है। 1. भारतीय कौन है? जो भारत का है वो भारतीय है। भारत मे कौन है: सनातन धर्मी, मुस्लिम, बौद्ध, जैन, सिख, ईसाई, नास्तिक, आदिवासी, लिंगायत इत्यादि। भारत का इतिहास कितना पुराना है? 1000 वर्ष, 5000 वर्ष यह शायद उससे भी पुराना। सदियों तक बौद्धों ने भारत पे राज किया। कभी छोटे छोटे राज्यों मे बंटे हिन्दुओं ने, कभी मुसलमानों ने राज किया, कभी अंग्रेजों का शासन रहा। पिछले कुछ वर्षों से ब्राह्मणों की हुकूमत है।  भारत केवल एक सीमा का नाम नही है। ये सीमा तो बदलती रही है। कभी भारत के अंदर ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, बर्मा, भूटान, कंबोडिया, मलेशिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड भी आता था। बाद मे स्वयं भारतीयों ने इसका विभाजन किया और कई विभाजनों के उपरांत आज का भारत ह

ईशदूत यूनुस की कहानी के 4 सबक

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  ईशदूत यूनुस की कहानी के 4 सबक 1. आपने पापों को पहचानो और क्षमा मांगो। जब मछली समुद्र की गहराई में उतरी तो ईशदूत यूनुस को अपनी गलती का आभास हुआ, वह मछली के पेट मे ही माथे के बल झुक गए और ईश्वर से क्षमायाचना की। 2. ईश्वर की दया से निराश मत होना। ना तो उन्होंने अपने दुर्भाग्य का रोना रोया और ना ही हिम्मत हारी। बल्कि उन्होंने आपने हाथ ईश्वर की ओर उठा दिए। "तो हमने उनकी विपत्ति को हटा कर उत्तर दिया। इसी प्रकार हम आस्थावान लोगों की सहायता करते हैं।" (क़ुरआन 21:88) 3. दावाह के कार्य मे धैर्य का महत्व। तुम्हारे परिश्रम का फल मिलने में समय लगेगा। यह भी सम्भव है कि तुम्हारे करीब के लोग भी सत्य को स्वीकार ना करें जबकि तुम वर्षों से उनतक संदेश पोहचा रहे हो। इसका अर्थ यह नही कि तुम हतोत्साहित होकर अपने प्रयास बन्द कर दो। 4.स्मरण (ईश्वर की याद) और प्रार्थना (ईश्वर से सहायता मांगना)  तुम्हारे सबसे उपयोगी हथियार हैं। ईशदूत यूनुस को अनुभूति हुई कि समुद्र के तल में भी जीव जन्तु ईश्वर का गुणगान कर रहे थे। यह ईश-स्मरण और प्रार्थना के लिए उनकी याद-दिहानी थी। ईश्वर के आदेशों की अवहेलना में तुम जि

हमें ईश्वर से भय करना चाहिए अथवा प्रेम?

हमें ईश्वर से भय करना चाहिए अथवा प्रेम ?  प्रश्न: हमें ईश्वर से भय करना चाहिए अथवा प्रेम?  मेरी व्यक्तिगत मान्यता है कि "भय", आज्ञाकारिता की दिशा में पहला कदम है। ************************* उत्तर: अरबी शब्द "तक़वा" का अनुवाद प्रायः 'डर' के रूप में किया जाता है।  'वाओ', 'क़ाफ़', 'या' की मूल धातु 'प्रेम / भक्ति' को इंगित करती है। ईश्वर का भय वैसा नही है जैसा जानवरों, भूत या बुरे लोगों का होता है। ईश्वर से प्रेम किया जाता है। जब किसी से प्रेम एक सीमा से अधिक हो जाता है तो "डर/भय" स्वतः जन्म लेता है।  यह डर/भय किसी डरावनी वस्तु के डर से भिन्न, "प्रेम की पराकाष्ठा" से उतपन्न होती है।  यह डर, अपने प्रेमी के नाखुश हो जाने का है।  यह भय या असुरक्षा की भावना, प्रेमी की आज्ञा की अवहेलना से रोकता है। यही प्रेम और भय का मिश्रण "तक़वा" है जिसका क़ुरआन आदेश देता है। "...वह जो आस्था रखते हैं वह ईश्वर से अत्यधिक प्रेम करते हैं।" क़ुरआन 2:165 क़ुरआन कहता है कि आस्थावान लोग ईश्वर की भक्ति या प्रेम में लीन रहते