ईशदूत यूनुस की कहानी के 4 सबक

 


ईशदूत यूनुस की कहानी के 4 सबक


1. आपने पापों को पहचानो और क्षमा मांगो।

जब मछली समुद्र की गहराई में उतरी तो ईशदूत यूनुस को अपनी गलती का आभास हुआ, वह मछली के पेट मे ही माथे के बल झुक गए और ईश्वर से क्षमायाचना की।


2. ईश्वर की दया से निराश मत होना।

ना तो उन्होंने अपने दुर्भाग्य का रोना रोया और ना ही हिम्मत हारी। बल्कि उन्होंने आपने हाथ ईश्वर की ओर उठा दिए।


"तो हमने उनकी विपत्ति को हटा कर उत्तर दिया। इसी प्रकार हम आस्थावान लोगों की सहायता करते हैं।" (क़ुरआन 21:88)


3. दावाह के कार्य मे धैर्य का महत्व।

तुम्हारे परिश्रम का फल मिलने में समय लगेगा। यह भी सम्भव है कि तुम्हारे करीब के लोग भी सत्य को स्वीकार ना करें जबकि तुम वर्षों से उनतक संदेश पोहचा रहे हो।

इसका अर्थ यह नही कि तुम हतोत्साहित होकर अपने प्रयास बन्द कर दो।


4.स्मरण (ईश्वर की याद) और प्रार्थना (ईश्वर से सहायता मांगना)  तुम्हारे सबसे उपयोगी हथियार हैं।

ईशदूत यूनुस को अनुभूति हुई कि समुद्र के तल में भी जीव जन्तु ईश्वर का गुणगान कर रहे थे।

यह ईश-स्मरण और प्रार्थना के लिए उनकी याद-दिहानी थी।


ईश्वर के आदेशों की अवहेलना में तुम जितना भी दूर निकल गए हो, सच्चा प्रयाश्चित तुम्हें ईश्वरीय कृपा का पात्र बन देगा। और वह तुम्हारे पापों को क्षमा करके तुम्हे विषम परिस्थितियों से निकाल देगा।

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