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अक्तूबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

फ़र्ज़, सुन्नत और नफिल नमाज़ में फर्क ?

फ़र्ज़, सुन्नत और नफिल नमाज़ में फर्क ?     खुर्शीद इमाम ********************* सबसे पहले यह नोट करना बोहोत ज़रूरी है कि इस्लाम में सिर्फ दो तरह की नमाज़ है : 1. फ़र्ज़ - मतलब ज़रूरी । अगर कोई इसे अदा न करे तो ये गुनाह माना जाएगा । 2. नफिल - मतलब इख्तियारी (ऑप्शनल) । अगर कोई अदा करता है तो इसका सवाब मिलेगा, फिर भी अगर कोई अदा न कर सके, तो कोई गुनाह नहीं है । यह गुनाह नहीं माना जाएगा जैसे फ़र्ज़ नमाज़ को छोड़ने का गुनाह है । मुहम्मद स० ने नमाज़ को कभी भी वाजिब, सुन्नत ए मौकिदा, सुन्नत ए गैर मौकिदा , मंदूब, मुस्तहब वगैरह वगैरह में नहीं बांटा । बल्कि ये नाम तो रसूल अल्लाह स० के वक़्त में इस्तेमाल भी नहीं होते थे । ये नाम तो बाद के वक़्त के आलिमों द्वारा आम लोगों की आसानी के लिए रखे गए थे । क़ुरआन और नबी स० की हिदायत किसी भी काम को सिर्फ दो हिस्सों में बांटते हैं : ज़रूरी [फ़र्ज़] या इख्तियारी [नफिल] । बाद के आलिमों ने नफिल को और कई दर्जों में बांट दिया : 1. वाजिब : वो जो नबी स० अक्सर किया ही करते थे । 2. सुन्नत-ए-मौकिदा : वो जो नबी स० ज़्यादातर किया करते थे । 3. सुन्

क़ुरआन को छोड़ देने के 11 आसान तरीके

कैसे लोगों को क़ुरआन से दूर किया जाता है: 1- तुम क़ुरआन को खुद नहीं समझ सकते, तुम्हे एक "सही" आलिम के पास जाकर ही सीखना पड़ेगा । 2- तुम्हें क़ुरआन को सिर्फ और सिर्फ ऐसे ही समझना पड़ेगा जैसे सलफुस्सालिहीन [मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह स० के बाद की पहली तीन पीढ़ियों] ने समझा, तुम ऐसा कोई मतलब अखज़ नहीं कर सकते (नहीं निकाल सकते) जो सलफुस्सालिहीन से साबित न हो । 3- तुम्हें क़ुरआन को समझना है तो इस के लिए तुम्हारे पास 15-20 तरीके के उलूम (इल्म) होने ज़रूरी हैं । 4- क्या तुम अरबी जानते हो ? अगर नहीं - तो तुम्हें क़ुरआन की आयात का मतलब निकालने का कोई हक़ नहीं । 5- अगर तुमने क़ुरआन की आयात का कोई ऐसा मतलब निकाला जो सलफुस्सालिहीन से साबित नहीं है तो तुम गुमराह हो । 6- तुम गौरो-फिक्र (रीज़निंग) और तर्क (लॉजिक) का इस्तेमाल करके क़ुरआन को नहीं समझ सकते । 7- तुम्हें क़ुरआन की आयात का शान-ए-नुज़ूल और असबाब-ए-नुज़ूल पता होना चाहिए - इसके बिना तुम क़ुरआन को नहीं समझ सकते । 8- तुम्हें क़ुरआन की तफसीर सिर्फ किसी पुराने (शुरुवाती दौर के) आलिम (जैसे कि इब्ने कसीर) की तरह ही करनी चाहिए

काफिर शब्द का क्या अर्थ है?

काफिर शब्द का क्या अर्थ है? अरबी शब्दकोश में काफिर शब्द का धातु (root): (क+फ+र) کفر काफ़िर शब्द के तीन अलग अलग अर्थ है 1- छिपाना 2- इन्कार करना 3- नाशुक्री,अकृतज्ञता 1- सबसे पहले "छिपाना" ...كَمَثَلِ غَيْثٍ أَعْجَبَ الْكُفَّارَ نَبَاتُهُ... ...वर्षा की मिसाल की तरह जिसकी वनस्पति ने किसान का दिल मोह लिया।... क़ुरआन 57:20 यहाँ कुफ्फारٍ الْكُفَّارَ जो काफिर کفار के जमा (बहुवचन) इस्तेमाल हुआ है यहाँ किसान को काफिर (کافر,छिपानेवाला) कहा गया है क्यूंकि किसान ज़मीन के नीचे बीजों छिपाता हैं 2- इन्कार करना لَا إِكْرَاهَ فِي الدِّينِ ۖ قَدْ تَبَيَّنَ الرُّشْدُ مِنَ الْغَيِّ ۚ فَمَنْ (يَكْفُرْ ) بِالطَّاغُوتِ وَيُؤْمِنْ بِاللَّهِ... दीन (धर्म) के सम्बन्ध में कोई ज़बरदस्ती नहीं। सन्मार्ग, पथभ्रष्टता से अलग हो चुका है। अतः जो व्यक्ति, शैतान को "झुठलाये" (इन्कार करना) और ईमान लाये, अल्लाह पर... क़ुरआन 2:256 यहाँ یکفر (yakfur) शब्द का इस्तेमाल हुआ है और मुसलमानों के लिए आया है यहाँ मुसलमानों को कहा जा रहा है कि तुम शैतान का इनकार करो 3- नाशुक्री,अकृत

क़ुरआन की जन्नत और मुसलमानों की जन्नत

क़ुरआन की जन्नत और मुसलमानों की जन्नत "खुर्शीद इमाम" ****************** अलग अलग जगहों पर क़ुरआन ने उन क्वालिटीज़ का ज़िक्र किया है जो जन्नत में जाने के लिए होनी चाहिए, सूरह रा'द (13) की आयत नंबर 19-24 तक जन्नत के लोगों (अहले जन्नत) की ऐसी तफसीर पढ़कर शादाब बड़ा ही खुश था,👇 क़ुरआन 13:19 ... इस के सिवा नहीं कि  अक्ल वाले  ही समझते हैं (जो सोचते हैं, जो गौरो फिक्र करते हैं, जो अपनी अक्ल का इस्तेमाल करते हैं) । क़ुरआन 13:20 ... वह जो अल्लाह का अहद पूरा करते हैं और पुख्ता कौल औे इकरार नहीं तोड़ते ( ऐसे लोग जो अपने वादों और एग्रीमेंट्स की कद्र करते हैं ) । क़ुरआन 13:21 ... और वह लोग  जो जोड़े रखते हैं  जिस  लिए अल्लाह ने हुक्म दिया है कि जोड़ा जाए, और वह अपने रब से डरते हैं, और बुरे हिसाब का खौफ खाते हैं (क़ुरआन रिश्तों नातों को कायम रखने और उन्हें मज़बूत बनाने पर ज़ोर देता है और बंटने से रोकता है, वो अपने बुरे हिसाब से डरते हैं) । क़ुरआन 13:22 ... और जिन लोगों ने अपने रब की खुशी हासिल करने के लिए  सब्र किया , और उन्होंने नमाज़  कायम  की, और जो हम ने उन्हें दिय