सूर्य एवं चन्द्रमा हमें लाभ देते हैं तो क्या हम उनकी उपासना कर सकते हैं?

सूर्य एवं चन्द्रमा हमें लाभ देते हैं तो क्या हम उनकी उपासना कर सकते हैं?

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विभिन्न परिस्थितियों के लिए विभिन्न शब्द एवं विभिन्न व्यवहारों का चयन होता है।

सम्मान, प्रेम, स्नेह, समर्पण, प्रशंसा, श्रद्धा - आदि शब्दों का विभिन्न परिस्थितियों में प्रयोग होता है।

हम अपने माता पिता से प्रेम और सम्मान करते हैं।

किसी क्रिकेटर अथवा किसी साहसी व्यक्ति की प्रशंसा की जाती है। परन्तु यह लोग हमारे माता-पिता का जगह नहीं ले सकते। हम इनसे उस प्रकार प्रेम नही कर सकते जैसे अपने माता-पिता से करते हैं।

हम अपने पति/पत्नी से प्रेम करते हैं परन्तु वैसा ही प्रेम हम पड़ोसी से नही करते हैं।

हम ईश्वर के समक्ष समर्पित होते हैं। हमारा सम्पूर्ण जीवन ईश्वर के मार्गदर्शन में व्यतीत होना चाहिए।

ईश्वर का जगह कोई और नहीं ले सकता।

हम पशुओं के प्रति भी स्नेह की भावना रखते हैं परन्तु यह स्नेह हमारे सन्तान के प्रति स्नेह से निश्चित रूप से भिन्न होता है।

हम फूलों, पक्षियों, आकाश, सागर, पर्वत, सूर्य, चंद्रमा, आदि की सुंदरता की प्रशंसा करते हैं। यह सब प्रमाण है एक महान रचनाकार का, जिसे हम ईश्वर कहते हैं।

ग्रहों का अपनी धुरी पर घूमना और सूर्य के चारों ओर परिक्रमा, इस बृहद ब्रह्मांड की व्यापकता, उस ईश्वर की महानता को प्रदर्शित करती है।

तो कौन सम्मान और प्रशंसा के योग्य है और कौन उपासना के योग्य है?

निःसन्देह सूर्य, चन्द्र, तारे, आदि उस ईश्वर की रचनाएं हैं जो हमारा भी रचयिता है।

हमें उस महान ईश्वर से ही प्रेम और उसी की उपासना करनी होगी क्योंकि उसी ने हमें माता, पिता, पति/पत्नी, पुष्प, पक्षी, चाँद और तारे, इत्यादि प्रदान किये हैं।

हमारी प्रत्येक श्वास ईश्वर प्रदत्त है।

जब हम अपने माता-पिता एवं आपने चारों ओर प्रत्येक वस्तु को पसन्द करते हैं तो हमे चाहिए कि उसका श्रेय उस रचयिता को दें। वह, जो हमारा मालिक है, जो हमारी प्रत्येक प्रसन्नता का कारण है, उसको श्रेय न देना अथवा उसके प्रति श्रद्धा एवं कृतज्ञता का भाव ना उतपन्न होना, क्या न्यायसंगत है..?

एक संतुलित दृष्टिकोण के अंर्तगत, सूर्य, चन्द्र, पुष्प, प्रकृति आदि की प्रशंसा होगी और उपासना केवल ईश्वर की होगी जो इन सब कृतियों का रचनाकार है।

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