मैं विज्ञान में विश्वास करता हूँ। मुझे धर्म अथवा ईश्वर की क्या आवश्यकता है?

मैं विज्ञान में विश्वास करता हूँ। मुझे धर्म अथवा ईश्वर की क्या आवश्यकता है?

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ईश्वर के बनाए नियम को जब हम खोज लेते हैं तो उसे विज्ञान कहते है। जितना हम इन नियमों पर मनन करते हैं - उतना ही हम मानवीय जीवन को बेहतर बना पाते हैं।

विज्ञान हमारे दैनिक जीवन मे बहुत सहायक है। हमारी अलार्म घड़ी से चिकित्सीय दवाओं तक, सब विज्ञान ही है।

वहीं दूसरी ओर विज्ञान की भी अपनी सीमाएं हैं। यह विज्ञान के साथ बड़ा अन्याय होगा कि हम जीवन के हर क्षेत्र में उससे दिशा निर्देश की अपेक्षा रखें। अपितु समग्र मानवीय ज्ञान के प्रकाश में यह हमसे अपेक्षित है कि हम विज्ञान की दिशा का निर्धारण करें।

यह विज्ञान का स्वभाव/उद्देश्य नहीं कि वह हमें मानसिक और भावनात्मक रूप से एक बेहतर मनुष्य बनाने की दिशा में योगदान दे। उदाहरण स्वरूप : विज्ञान, सदाचार,  नैतिक मूल्यों, अथवा सामाजिक व्यवहार को विषय नहीं बनाता।
माता-पिता का आज्ञापालन, पति/पत्नी में प्रेम, बच्चों का लालन-पालन, असहाय की सहायता को प्रेरित करना - ये सब विज्ञान के विषय-क्षेत्र में नहीं है।

इसी प्रकार, विज्ञान, ना किसी व्यक्ति के विवेक को जगाता है और ना ही किसी व्यक्ति को दूसरे को कष्ट/हानि/आघात पहुँचाने से रोकता है।

एक अत्याधुनिक वैज्ञानिक प्रयोगशाला में "कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न निवारण" की HR नीति होती है, परन्तु विज्ञान हमे यह कदापि नही बता सकता कि नैतिक यौन व्यवहार क्या है।

हांलाकि विज्ञान की आवश्यकता हमारे दिन प्रतिदिन के जीवन मे हैं परन्तु यह हमारे अस्तित्व के व्यापक उद्देश्यों की पहचान नही कर सकता: उदाहरण के लिए

1-  जीवन का उद्देश्य क्या है?

2- हमारे कौन से कार्य लाभदायक हैं और कौन से आत्मघाती?

3- किस प्रकार के नियमों के लागू होने से निर्धनता, नशे की लत, बलात्कार, डकैती, हत्या, इत्यादि से मुक्ति मिल सकती है?

4- व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में शान्ति की स्थापना किस प्रकार सम्भव है?

विज्ञान, इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर देने में असमर्थ है।

अतः हमें एक ऐसी विधा की आवश्यकता है जो ज्ञान रूप में, विज्ञान से अधिक व्यापक वैचारिक क्षेत्र को समेट सके। और वह परमेश्वर का दिया हुआ मार्गदर्शन है।

हम मार्गदर्शन चाहते हैं उससे, जिसने मानवसमाज की रचना की है। वह, जो पूर्ण रूप से जानता है की सम्पूर्ण मानवता के लिए क्या अच्छा और बुरा है और वह जो निष्पक्ष हो।

ईश्वर द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों का अनुपालन ही ईश्वरीय धर्म है।

और यह दिशानिर्देश हमें, ईश्वर द्वारा प्रदत्त ज्ञान से मिलेगा।

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