क्या पर्दा प्रथा का कारण मुगल शासक है?

क्या भारतीय/हिन्दू संस्कृति में पर्दा प्रथा का कारण मुगल शासक है?

भारत मे चल रहे नफरत और झूठ के अभियान के द्वारा प्रचारित किया जा रहा है कि पर्दा/घूंघट प्रथा, हिंदू संस्कृति का हिस्सा कभी नही था। परन्तु मुगल आक्रांताओं की दुष्ट दृष्टि से रक्षा के उद्देश्य से इसका आरम्भ हुआ।

अपने सर को ढकना, अच्छा है या बुरा - इसे पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। अभी आरोपों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

यह सही है कि भारत मे हिंदुओं और मुसलमानों ने हजारों वर्षों से साथ रहने के कारण दोनों संस्कृतियों को प्रभावित किया है। और यह बहुत स्वाभाविक है।

सदियों से हिन्दू स्त्रियां अपने श्वसुर, जेठ और अन्य बुजुर्गों के समक्ष घूंघट के द्वारा अपना सिर और चेहरा ढंकती आई हैं। परिवार के यह बड़े, मुगल नही थे!

वर्तमान समय मे भी भारत के अनेक क्षेत्रों में घूंघट प्रथा का चलन है। क्या इन क्षेत्रों में मुगल शासन है? अथवा इनके घर के लोग मुग़ल हैं?

कुछ लोगों के द्वारा एक अटपटा कुतर्क भी दिया जाता है - "अजंता और एलोरा की स्त्रियों ने चित्रों में सिर को ढका नही है, इससे सिद्ध होता है की प्राचीन भारत की स्त्रियां सर नहीं ढंकती थ"। यह लोग इस तथ्य को भूल जाते हैं कि अजंता एलोरा की कृतियों के चित्र ना केवल नग्नावस्था के है, अपितु यह कामुकता के निकृष्टतम रूप को दर्शाते हैं। क्या यह लोग अपने तर्कों द्वारा यह स्थापित करना चाहते है कि प्राचीन भारतीय महिलाएं नग्न विचरण करती थीं? निश्चित रूप से "नही"!

भारत मे झूट और नफरत का अभियान चलाने वालों की यह स्पष्ट प्रवृत्ति बन गई है कि समाज की प्रत्येक बुराई
के लिए मुसलमानों को ज़िम्मेदार ठहराते हैं ।

स्वामी विवेकानंद जी ने हिन्दुओं के इस प्रवृत्ति की कड़ी आलोचना की है।

उनका मानना था कि प्राचीन भारतीय सभ्यता में अनेकों कुरीतियां थीं, जिनका अनेक शास्त्रों में वर्णन है और ब्राह्मण और अन्य टिप्पणीकर्ताओं को इस तथ्य की जानकारी भी थी। मुसलमानों या किसी अन्य समुदाय को इन कुरीतियों के लिए दोषी मानना अनुचित है। उन्होंने ग्रह-सूत्र और वेदिक अश्वमेध बलि का का भी उदाहरण दिया है।

स्वामी विवेकानंद जी ने कहा : "एक आठ वर्षीय कन्या का विवाह तीस वर्षीय मर्द से किया जाता था और परिवार गण इसपर उल्लसित होते थे...और यदि कोई इसका विरोध करता था तो शोर मचाया जाता था कि "हमारे धर्म मे हस्तक्षेप किया जा रहा है"। यह किस प्रकार की धार्मिक संस्कृति है जिसके चलते कन्याओं को तारुण्य प्राप्ति से पूर्व ही माँ बन जाना पड़ता था? और इस प्रकार की कुरीतियों के पक्ष में अनेक मिथ्या वैज्ञानिक व्याख्याओं को रखा जाता था। फिर, इसका आरोप पुनः मोहम्मदन (मुस्लिमों) के माथे मढ़ा जाता है। निश्चित ही वह आरोपी है! एक बार ग्रह-सूत्र का अध्ययन से पता करो कि कन्याओं के विवाह की अनुमत आयु क्या है?"

स्वामी विवेकानंद जी आगे कहते हैं -
.."वहां यह तथ्य स्पष्ट रूप से उद्धृत है कि कन्या का विवाह तरुण अवस्था प्राप्ति से पूर्व ही होना चाहिये। सम्पूर्ण गृह-सूत्र इसे आदेशित करता है। और वैदिक अश्वमेध बलि में और अधिक भयानक कुरीतियां है...सभी ब्राह्मणों में इसका उल्लेख है, और सभी टिप्पणी कर्ताओं ने इसकी सत्यता को स्वीकार किया है। इसको नकारना असंभव है। इन सब विषयों के उल्लेख का प्रयोजन यह है कि "प्राचीन समय मे बहुत अच्छे आचार भी थे और अनेकों कुरीतियां भी विद्यमान थी"। अच्छे विचारों का पुनरूत्थान होना चाहिए, परन्तु भविष्य का 'नया भारत', जैसा कि उसे बनना है, उसे प्राचीन भारत से बहोत उच्च होना है।"

स्रोत: स्वामी विवेकानंद के सम्पूर्ण जीवनलेख/अध्याय 6....

https://en.wikisource.org/wiki/The_Complete_Works_of_Swami_Vivekananda/Volume_6/Epistles_-_Second_Series/LXXI_Rakhal

हिन्दू संस्कृति में महिलाओं के लज्जापूर्ण ओढ़नी एवं परिधान के अनेकों सन्दर्भ उपलब्ध हैं।

ऋग्वेद के एक मन्त्र को देखे।

महिलाएं लज्जा वाली हों - अपने वस्त्र और आचार में, नज़रों को नीचे रखें, शरीर ढाका हुआ हो।
- ऋग्वेद ८ मंडल, ३३ सूक्त, १९ मन्त्र , पंडित हरिशरण सिद्धान्तालंकार भाष्य



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