ग़ैर-मुस्लिमों को उनके त्यौहारों पर बधाई देना
ग़ैर-मुस्लिमों को उनके त्यौहारों पर बधाई देना - जाइज़ है?
सवाल : ग़ैर-मुस्लिमों को उनके त्यौहारों पर बधाई देने का सही मसला बताएं... जैसे - हमारे ग़ैर-मुस्लिम दोस्तों को हैप्पी दीवाली कहना क्या जाइज़ है या हराम ?
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जवाब : जहां तक मैं जानता हूं हमारे ग़ैर-मुस्लिम भाइयों को उनके त्यौहारों पर बधाई देने में कोई हर्ज नहीं है । बल्कि कभी कभी तो ये ज़रूरी भी है ताकि वो तुम्हारे करीब आ सकें । कुछ मुस्लिम बहस करेंगे कि उनको बधाई दे कर तुम अल्लाह के बजाय उन्हें खुश करने की कोशिश कर रहे हो । यह बहस सिर्फ जज़्बात की बुनियाद पर है ।
1. दीन में ऐसा कुछ नहीं जो हमें उनको बधाई देने से रोके । कुछ लोग हदीस की किताब की एक रिवायत से कन्फ्यूज़ होते हैं जिसमें रसूल अल्लाह स० ने मुस्लिमों को इस्लाम से पहले वाले त्यौहारों को मनाने से मना किया है । (ईद उल फित्र और ईद उल अज़हा के अलावा) त्यौहारों को मनाने और अपने ग़ैर-मुस्लिम दोस्तों को उनकी बधाई देने में बोहोत बड़ा फर्क है ।
2. पिछले साल फेसबुक पर एक पोस्ट वायरल हो रही थी जिसमें कहा गया था कि अगर एक मुस्लिम "मैरी क्रिसमस" कहता है तो इसका मतलब वो मानता है कि यीशु मसीह की पैदाइश 25 दिसंबर को हुई थी और इसका मतलब है कि वो मानता है कि यीशु मसीह अल्लाह के बेटे हैं -- तो ऐसे मुस्लिम शिर्क के गुनहगार हैं !!!!! अब ये बेतुका लॉजिक ऐसा है जैसे कि अगर तुम कहो कि आज 13 दिसंबर 2014 है तो आप इस बात को मानते हो कि ये साल 2014 है और चूंकि ये सालों की गिनती यीशु मसीह की पैदाइश से चल रही है तो आप मानते हो कि यीशु मसीह 2014 साल पहले पैदा हुए थे इसलिए आप मानते हो कि यीशु मसीह खुदा के बेटे हैं इसलिए आप शिर्क कर रहे हो !!!!
3. जब कोई मुस्लिम "मैरी क्रिसमस" या "हैप्पी दिवाली" कहता है तो क्या कभी उसके दिमाग में ख्याल आता है कि यीशु मसीह खुदा के बेटे थे या श्रीराम ईश्वर के अवतार थे ??? नहीं.. दुनिया का कोई मुस्लिम ऐसा नहीं सोचता । यह उन मुस्लिमों की एक गलत कल्पना है जो सोचते है कि दूसरों के त्यौहारों पर बधाई देना गलत है । अगर आप "हैप्पी जन्माष्टमी" कहते हैं तो क्या इसका मतलब ये है कि आप मानते हो कि श्रीकृष्ण सर्वशक्तिमान ईश्वर थे ??? बेशक - नहीं !!!! जब आप उन्हें बधाई देंगे तो उनसे आपके रिश्ते खुशगवार रहेंगे और आपके पास दावत के बेहतर मौके होंगे । अगर कोई बधाई देने से बचना चाहता है तो वो ऐसा करने के लिए आज़ाद है । कोई दिक्कत नहीं ।
4. ये कहना कि बधाई देना हराम है "तशद्दुद" (इंतेहा पसंदी) की एक दूसरी मिसाल है । चीज़ों को संतुलन (तवाज़ुन) में रखें वरना हम तशद्दुद की ओर बढ़ जाएंगे ।
बोहोत ज़रूरी बात : सिर्फ अल्लाह ही है जो किसी चीज़ को हराम ठहरा सकता है । अल्लाह ने ये हक़ दुनिया के किसी इंसान को नहीं दिया । उन लोगों को बड़ा सतर्क रहना चाहिए जो ग़ैर-मुस्लिमों के त्यौहारों पर बधाई देने को हराम काम ठहराते हैं ।
जो इस मसले में वाक़ई दिलचस्पी रखते हैं मैं उन्हें ये वीडियो तजवीज़ करूंगा (देखने का मशवरा दूंगा) ।
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