क्यों खुद ही इस्लाम का मज़ाक़ उड़ाते हैं हम
क्यों खुद ही इस्लाम का मज़ाक़ उड़ाते हैं हम
खुर्शीद इमाम की कलम से....
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A. परिचय
..... ये हराम है इस्लाम में ।
.........ये करने की इजाज़त (अनुमति) नहीं है ।
................इसको स्वीकार नहीं किया जाएगा ।
......................…ये क़ुरआन और सुन्नत के खिलाफ (विरुद्ध) है ।
हमने इन बयानों को कई बार सुना है, मुस्लिम आलिमों ने भी बहुत से फतवे निकाले कई मुद्दों को लेकर, तो एक झलक इन्हीं मुद्दों पर और इन मुद्दों और बदलते माहौल पर लिए गए आलिमों के फैसलों पर ।
1. कॉलर लगी शर्ट पहनना या अंग्रेज़ी का इस्तेमाल करना हराम समझा जाता था, पर अब ? ये हमने ब्रिटिश हुकूमत के दौरान करा था कि वो चीज़ें जिनसे ऐसा महसूस हो कि हम ब्रिटिश की मुशाबिहत (नकल) कर रहे हैं वो हराम या अवैध हैं । इसलिए शर्ट पहनना, अंग्रेज़ी का इस्तेमाल आदि हराम किया गया था ।
2. कॉफी पीना हराम था.. पर अब ? कॉफी के चलन के शुरुवाती दौर में हम में से कुछ ने कॉफी पीने को हराम करार दिया था ।
3. माइक पर अज़ान देना हराम था.... और अब ? ये बात तो हम अभी पिछले कुछ समय तक मानते थे कि माइक पर अज़ान देना हराम है ।
4. टाई पहनना पहले हराम था... और अब ? कुछ वक़्त पहले तक हम टाई पहनने को हराम मानते थे, हम टाई पहनने को काफिरों की मुशाबिहत (नकल) करना समझते थे, यहां तक कि आज भी हम में से कुछ टाई पहनने को काफिरों की मुशाबिहत (नकल) मानते हैं, और हराम काम मानते हैं ।
5. फोटोग्राफी हराम थी... और अब ? अगर आप ने 1990 से पहले तक के किसी मुस्लिम आलिम से फोटोग्राफी के बारे में पूछा होता - तो करीब है कि आपको यही जवाब मिलता कि ये हराम है, मुस्लिम दुनिया की बड़ी तादाद यही मानती थी कि फोटोग्राफी बिल्कुल भी जाइज़ (हलाल) नहीं है, यह पूरी तरह हराम है, आज भी उनमें से कुछ इसे हराम ही मानते हैं ।
6. टीवी / वीडियोग्राफी हराम थी... और अब ? फोटोग्राफी की तरह ही वीडियोग्राफी भी आलिमों द्वारा कुछ समय पहले तक हराम समझी जाती थी, करीब करीब चारों फुक्हा के आलिम इसे पूरी तरह हराम मानते थे, इंसान की वीडियो बनाना गैर-इस्लामी माना जाता था, एक आम सोच थी हवा में कि घर में टीवी का होना हराम है ।
नोट: जब मैंने "हम ने/हम में से कुछ ने/मुस्लिम आलिमों ने हराम किया है" आदि शब्दों का इस्तेमाल किया तो ज़ाहिर है कि इससे मुराद (इसका मतलब) सारे मुस्लिम आलिमों से नहीं है ।
B. क्या इस्लाम बदला है ?.... कोई नयी वही (ईश्वर की प्रकाशना) आई है या मुसलमानों की सोच गलत थी ?
अगर आज आप किसी मुस्लिम को कॉफी पीने से रोकेंगे क्योंकि आपको ऐसा लगता है कि यह हराम है तो आपको पागल घोषित कर दिया जाएगा ।
अगर आप कहेंगे कि शर्ट पहनना, अंग्रेज़ी बोलना इस्लाम में हराम है तो आपका मज़ाक उड़ाया जाएगा ।
इसी तरह अगर आप इसका प्रचार करेंगे कि टाई पहनना हराम है तो संभवतः (करीब है) कि लोग ये कहेंगे कि इस बंदे को इस्लाम की जानकारी नहीं है ।
फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की बात तो बड़ी ही दिलचस्प है । आलिमों के कुछ विचार :
a. कुछ कहते हैं कि निर्जीव चीज़ों की फोटोग्राफी या वीडियोग्राफी हलाल (वैध) है और बाकि की हराम । इसमें आप सब जानते होंगे कि पेड़ पौधों की फोटोग्राफी/वीडियोग्राफी हलाल है । (मैं पूछता हूं : क्या पेड़-पौधे जीवित हैं या निर्जीव ?)
b. कुछ कहते हैं कि इंसानों की फोटोग्राफी या वीडियोग्राफी हराम है बाकि की हलाल ।
c. अब कई आलिम ये कह रहे हैं (कम से कम ये प्रैक्टिकली है) कि किसी अच्छे मकसद (उद्देश्य) के लिए फोटोग्राफी/वीडियोग्राफी हलाल है - फिर चाहे वो इंसानों की हो या निर्जीवों की ।
C. बदलता माहौल:
1. हमारे तबलीगी जमात के भाई और कुछ और "नेक" मुस्लिम शुरू में फोटोग्राफी / वीडियोग्राफी के सख्ती से खिलाफ थे । वो घर के पुराने फोटोज़ को जलाने में भी कोई संकोच नहीं करते (ये समझते हुए कि घर पर फोटोज़ का होना हराम है) । और अब ?
अब वो फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी के खिलाफ उतना नहीं बोलते । मौलाना तारिक़ जमील साहब (तबलीगी जमात के एक बड़े आलिम) और कुछ दूसरे आलिमों के बयानों की बड़ी तादाद इंटरनेट पर वीडियो में मौजूद हैं । तबलीगी भाइयों के कई फोटोज़ इंटरनेट पर मौजूद हैं । कई की अपनी प्रोफ़ाइल पिक्चर है फेसबुक पर । अब फोटोग्राफी/वीडियोग्राफी को हराम कहने की आवाज़ बंद हो चुकी है ।
2. जमात-ए-इस्लामी के पुराने रिसालों (पत्रिकाओं) में इंसानों के फोटो नहीं हुआ करते थे । क्यों ? उन्हें लगता था कि ये हराम है । और अब ? जमात-ए-इस्लामी का कोई सेमिनार/ कार्यक्रम/ मीटिंग/ सम्मेलन (जलसा) तब तक पूरा नहीं होता जब तक कि अख़बारों, टीवी, पत्रिकाओं और मैगज़ीनों में ज़रूरत से ज़्यादा फोटो ना आ जाएं ।
3. हमारे सलफी भाई भी इस मसले पर बोहोत ज़्यादा बोला करते थे । उनके नज़दीक - चूंकि ज़्यादातर चीज़ें हराम होती हैं - तो ये कोई आश्चर्य (ताज्जुब) की बात नहीं कि उनके आलिम भी इसे बिल्कुल हराम समझते थे । तसव्वुर (कॉन्सेप्ट) ये दिया गया था कि जो इंसान फोटोग्राफी/वीडियोग्राफी करेगा उसे जहन्नम (नरक) में ही जाना है ।
और अब ? इंटरनेट पे मौजूद इस्लामिक
चीज़ों (वीडियो, ऑडियो, फोटो) में ७०% से ज़्यादा सलफीओ की हैं । सलफी आलिमों की वीडियोज़ बड़ी संख्या में यूट्यूब पर मौजूद हैं ।
4. इसी तरह देवबंद से भी आवाज़ उठी थी कि फोटोग्राफी/वीडियोग्राफी हराम है लेकिन अब वो आवाज़ या तो कहीं गायब हो गई या कम से कम अब उस पर ज़्यादा बात नहीं होती ।
5. हम सुनते हैं कि इस्लामिक लेक्चर्स (बयानों)/फिल्मों के ऑडियो/वीडियो या प्रिंट मीडिया के रूप में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल की वजह से लोग इस्लाम की ओर आ रहे हैं । बड़ी संख्या में इंटरनेट पर उपलब्ध वीडियोज़ के ज़रिए मुस्लिम और गैर-मुस्लिम इस्लाम को समझ रहे हैं । अगर वीडियोग्राफी हराम थी तो मुस्लिम आलिमों को - आज - वीडियोज़ के ज़रिए इस्लाम के प्रचार को बिल्कुल हराम घोषित कर देना चाहिए ।
कुछ चीज़ें जो कुछ साल पहले तक आलिमों के द्वारा हराम या अवैध मानी जाती थीं आज हलाल हैं या उनको बढ़ावा दिया जा रहा है । क्या ये तर्कसंगत और वैध है ? कहीं ना कहीं कुछ गलत है । अगर कोई चीज़ 20 साल पहले पूरी तरह हराम थी तो वो आज भी गलत होनी चाहिए, 20 साल बाद भी ।
यह एक गैर-इस्लामिक समाज की विशेषता है कि वो किसी चीज़ को वैध बना लेते हैं जबकि वो शुरू में अवैध मानी जाती थी । मिसाल के तौर पर : कुछ दशक पहले तक इंडिया में मिडिल क्लास फैमिली में शराब पीना एक बुरी चीज़ समझी जाती थी । आज यह एक नॉर्मल सी बात है । इसी तरह शादी से पहले लड़का लड़की का सम्बन्ध पाप माना
जाता था, भारतीय समाज में कुछ समय पहले तक; अब इसे बढ़ावा दिया जाता है । गैर-इस्लामिक समाज अपने मूल्यों और निर्णयों को बदलते हैं क्योंकि वो किसी ईश्वरीए नियम से बंधे नहीं होते।
D. लेकिन मुस्लिमों ने भी ऐसी ही गलतियां कैसे कीं ?
मेरा विश्लेषण (तहकीक) इस प्रकार है :
1. आम
तौर पे आलिमों की नियत (इरादा) अच्छी थी ।
2. क़ुरआन को पूरी तरह से छोड़ देने की वजह से - हम क़ुरआन के फहम को समझने में नाकामयाब रहे । चीज़ें जो हराम या अवैध हैं अल्लाह ने साफ साफ बताई हैं । नए अविष्कारों जैसे टीवी, फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी आदि का क्या ? इनके लिए क़ुरआन की रोशनी में बौद्धिक (अक़्ली) विचार-मंथन (गौरो-फिक्र) की ज़रूरत है ।
3. मगर अफसोस, मुस्लिम दुनिया, किसी भी गैर-मुस्लिम की नयी इजादकर्दा (खोजी हुई) चीज़ों को गैर-इस्लामिक मानती है । विज्ञान और तकनीकी में उन्नति को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से यही तसव्वुर देकर हतोत्साहित किया गया (दबाया गया) कि इस्लाम विज्ञान को खोजने के खिलाफ है ।
4. अगर हमने अक़्ली क़ुव्वतों (बौद्धिक क्षमताओं) का अच्छी तरह इस्तेमाल किया होता तो हम इस स्थिति में नहीं पोहोचते ।
5. ऊपर की सारी परेशानियों का इकलौता हल सिर्फ यही है कि लोग क़ुरआन को मजबूती से थाम लें और ये समझ जाएं कि इस्लाम दीन-ए-फितरत (प्राकृति का धर्म) है । दीन-इस्लाम के फहम को समझना एक ज़रूरी पहलू है जिसको लोगों ने नज़रअंदाज़ किया है ।
6. क़ुरआन के नियम हमेशा के लिए होते हैं और वो वक़्त के साथ बदलते नहीं । वक़्त के साथ इनको लागू करने का तरीका बदल सकता है ।
नोट : फोटोग्राफी / वीडियोग्राफी / टीवी पर इस्लामिक नियमों (उसूलों) की तफसील को यहां जानबूझ कर (इरादतन) छोड़ रहा हूं ।
E. निष्कर्ष (नतीजा)
1. इस्लाम दीन-ए-फितरत (प्राकृति का धर्म) है । यह इतना सहज है जैसे : 2+2=4.
2. इस्लाम के सिद्धांत अनंत (हमेशगी के) हैं और कभी वक़्त के साथ नहीं बदलते । किसी इस्लामिक नियम को लागू करने का तरीका वक़्त के साथ बदल सकता है ।
3. सिर्फ अल्लाह (सर्वशक्तिमान ईश्वर) किसी चीज़ को हराम ठहरा सकता है । किसी चीज़ को हराम बताते हुए बोहोत सतर्क रहना चाहिए । आज किसी चीज़ को हराम कहना और कल हलाल बना देना हमें मज़ाक का पात्र बनाता है ।
4. हराम हमेशा हराम ही रहेगा - हराम कभी हलाल नहीं बन सकता । लोगों की यह गलतफहमी है कि मजबूरी में हराम, हलाल बन जाता है । आयत 5:3 ये नहीं कहती कि हराम मजबूरी में हलाल बन जाएगा । बल्कि वो कहती है कि अगर तुम किसी असहनीय (ना काबिले बर्दाश्त) स्थिति में फंस जाओ तो उस हराम चीज़ के लिए तुम्हें उस स्थिति में गुनाह नहीं मिलेगा । कृपया इस ज़रूरी फर्क को नोट करें । असहनीय (ना काबिले बर्दाश्त) स्थिति में जब तुम हराम से नहीं बच सकते तब अगर तुम वो करो तो तुम गुनहगार नहीं होगे - इसका मतलब ये नहीं कि हराम असहनीय (ना काबिले बर्दाश्त) स्थिति में हलाल बन जाएगा ।
5. आने वाली पीढ़ी के लिए ये विश्वास करना बड़ा मुश्किल होगा कि हमने फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी को हराम करार दिया था । बिल्कुल वैसे ही जैसे आज की पीढ़ी के लिए ये विश्वास करना मुश्किल है कि एक वक़्त ऐसा था जब कॉफी, शर्ट,
टाई हराम कर दी गई थी ।
******** Mail : serviceforhumanity@gmail.com ********
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