फ़र्ज़, सुन्नत और नफिल नमाज़ में फर्क ?
फ़र्ज़, सुन्नत और नफिल नमाज़ में फर्क ?
खुर्शीद इमाम
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सबसे पहले यह नोट करना बोहोत ज़रूरी है कि इस्लाम में सिर्फ दो तरह की नमाज़ है :
1. फ़र्ज़ - मतलब ज़रूरी । अगर कोई इसे अदा न करे तो ये गुनाह माना जाएगा ।
2. नफिल - मतलब इख्तियारी (ऑप्शनल) । अगर कोई अदा करता है तो इसका सवाब मिलेगा, फिर भी अगर कोई अदा न कर सके, तो कोई गुनाह नहीं है । यह गुनाह नहीं माना जाएगा जैसे फ़र्ज़ नमाज़ को छोड़ने का गुनाह है ।
मुहम्मद स० ने नमाज़ को कभी भी वाजिब, सुन्नत ए मौकिदा, सुन्नत ए गैर मौकिदा , मंदूब, मुस्तहब वगैरह वगैरह में नहीं बांटा । बल्कि ये नाम तो रसूल अल्लाह स० के वक़्त में इस्तेमाल भी नहीं होते थे । ये नाम तो बाद के वक़्त के आलिमों द्वारा आम लोगों की आसानी के लिए रखे गए थे ।
क़ुरआन और नबी स० की हिदायत किसी भी काम को सिर्फ दो हिस्सों में बांटते हैं :
ज़रूरी [फ़र्ज़] या इख्तियारी [नफिल] ।
बाद के आलिमों ने नफिल को और कई दर्जों में बांट दिया :
1. वाजिब : वो जो नबी स० अक्सर किया ही करते थे ।
2. सुन्नत-ए-मौकिदा : वो जो नबी स० ज़्यादातर किया करते थे ।
3. सुन्नत-ए-गैर मौकिदा / मुस्तहब / मंदूब : वो जो नबी स० कभी कभी किया करते थे ।
ये सब नाम नबी स० द्वारा नहीं दिए गए थे - इसीलिए हम इस पर बाद के उलेमा में कई इख्तिलाफ और टकराव देखते हैं । मिसाल के तौर पर :
1. 4 फुक़्हा में सब में आपसी इख्तिलाफ :
पांचों नमाज़ों में नफली रकतों की तादाद में इख्तिलाफ ।
नमाज़ के वक़्त में इख्तिलाफ ।
नमाज़ के कुछ दूसरे मसलों में इख्तिलाफ । मिसाल के तौर पर : इमाम मालिक के हिसाब से फ़र्ज़ नमाज़ में हाथों को साइड में लटके रहने दिया जाएगा । बाकि के तीन फुक़्हा का मसला इससे अलग है ।
2. इमाम अबू हनीफा वित्र नमाज़ को वाजिब बताते थे । शाफ़ई, मालिकी और हंबली उलेमा ने वित्र की नमाज़ को सुन्नत बताया है ।
अलग अलग बुनियाद और मयारों के हिसाब से उलेमा ने नफिलों को अलग अलग दर्जों में तकसीम किया (बांटा) ।
नतीजा (आखिरी तौर पर) :
1. ये 5 वक़्त की नमाज़ें [फजर: 2 रकात, ज़ुहर: 4 रकात, असर : 4 रकात, मगरिब : 3 रकात, इशा : 4 रकात] ज़रूरी (फ़र्ज़) हैं, और अगर तुमने इन्हे अदा नहीं किया तो इसका तुमसे सवाल किया जाएगा ।
2. बाकि सारी नमाज़ें इख्तियारी (ऑप्शनल) हैं । ध्यान रखें कि फ़र्ज़ नमाज़ें किसी भी हालत में न छूटें ।
ज्ज़कल्लाह खैर
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