संदेश

जून, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ईश्वर की वाणी : सूरह अन-निसा, आयत 82 पर एक चिंतन

चित्र
ईश्वर की वाणी : सूरह अन-निसा, आयत 82 पर एक चिंतन खुर्शीद इमाम ----------------------------------------------- सूरह अन-निसा, अध्याय 4, आयत 82 में कहा गया है : "क्या वे कुरआन पर ध्यानपूर्वक विचार नहीं करते? अगर यह अल्लाह के अलावा किसी और की ओर से होता, तो वे इसमें बहुत से विरोधाभास (contradictions) पाते।" أَفَلَا يَتَدَبَّرُونَ الْقُرْآنَ ۚ وَلَوْ كَانَ مِنْ عِندِ غَيْرِ اللَّهِ لَوَجَدُوا فِيهِ اخْتِلَافًا كَثِيرًا यह आयत एक अद्भुत दावा पेश करती है — कि कुरआन, जो कि दिव्य (ईश्वर की ओर से) है, उसमें कोई भी विरोधाभास नहीं है। यहां "विरोधाभास" के लिए अरबी शब्द "इख़्तिलाफ़न (اختلافًا)" प्रयोग हुआ है। जो बात वाक़ई हैरान करने वाली है, वो यह है कि यह शब्द "इख़्तिलाफ़न" पूरे कुरआन में केवल एक ही बार आता है — और वो भी ठीक इसी आयत में। थोड़ा ठहरकर इस पर सोचिए। कुरआन अपने पाठक को चुनौती देता है कि अगर यह किसी इंसान का लिखा हुआ होता, तो इसमें अनेक विरोधाभास होते। लेकिन देखिए, "विरोधाभास" शब्द को बार-बार नहीं दोहराया गया। यह एकदम सही जगह, सही संद...