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भारतीय धार्मिक साहित्य का उर्दू और फारसी में अनुवाद और उससे जुड़े आरोप

  भारतीय धार्मिक साहित्य का उर्दू और फारसी में अनुवाद और उससे जुड़े आरोप खुर्शीद इमाम भारतीय धार्मिक साहित्य का उर्दू और फारसी में अनुवाद और उससे जुड़े आरोप धार्मिक ग्रंथों का अनुवाद इतिहास में हमेशा से होता आया है। यह अक्सर समझने, शासन करने या संस्कृतियों को जोड़ने के लिए किया जाता था। भारत में, मुस्लिम शासकों ने मध्यकाल में हिंदू धर्मग्रंथों का फारसी और बाद में उर्दू में अनुवाद करवाया। इस पर आरोप लगाया गया कि इन ग्रंथों को गलत तरीके से अनुवादित कर हिंदू विश्वासों को तोड़ने की कोशिश की गई। यह लेख इन आरोपों की पड़ताल करता है और ऐतिहासिक उदाहरणों के आधार पर यह साबित करता है कि अनुवाद में गलतियाँ जानबूझकर नहीं की गईं और इससे हिंदू धर्म की बुनियाद पर कोई असर नहीं पड़ा। धार्मिक ग्रंथों के अनुवाद के ऐतिहासिक उदाहरण 1. अब्बासी खिलाफत: यूनानी ग्रंथों का अरबी में अनुवाद आठवीं से दसवीं सदी में अब्बासी खिलाफत ने यूनानी दार्शनिक और वैज्ञानिक ग्रंथों को अरबी में अनुवादित किया। बगदाद के "हाउस ऑफ़ विज़डम" में विद्वानों ने अरस्तू और प्लेटो जैसे विचारकों के कार्यों को इस्लामी विचारधारा में ...