परिचय: श्री सैय्यद अब्दुल्लाह तारिक़ साहब
परिचय: श्री सैय्यद अब्दुल्लाह तारिक़ साहब
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जनाब सैय्यद अब्दुल्लाह साहब, उत्तर प्रदेश के रामपुर ज़िला से हैं। पढ़ाई से वह एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं तथा वर्ष 1987 से वह पूर्णकालिक दा'ई (आह्वाहन कर्ता) हैं। वह एक जानी मानी हस्ती हैं जिनका सम्मान विभिन्न सम्प्रदायों को मानने वालों द्वारा किया जाता है। शांति का संदेश प्रस्तुत करना ही उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य है। इस जुनून ने उनको विभिन्न धार्मिक मतों की धर्म ग्रंथों के अध्ययन को बाध्य किया जिसके कारण उनको क़ुरआन, वेदों, उपनिषद, गीता, बाइबल के अनेक संस्करण, गुरु ग्रंथ साहिब तथा अनेक धर्म गुरुओं के व्याख्यानों पर ज़बरदस्त महारत हासिल है।दावत - दीन के मैदान में उनकी कामयाबी का अंदाज़ा इस हक़ीक़त से लगाया जा सकता है कि वो उन चंद इस्लामिक उपदेशकों में से हैं जिनको सभी बड़े धार्मिक पंथों जैसे सनातन धर्म, ब्रह्म कुमारी, आर्य समाज, निरंकारी मिशन, गायत्री परिवार, मसीही समाज, आदि द्वारा, इस्लाम पर व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया जा चुका है।
वर्ष 2008 में, उन्होंने, इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन (IRF) के बुलावे पर, मशहूर "पीस कॉन्फ्रेंस" को खिताब किया था। साथ ही 2008 में स्पेन में हुए Interfaith Dialogue में भी उन्हें बोलने के लिए दावत दी गई थी।
अल्लामा सैय्यद अब्दुल्लाह तारिक़ साहब ने 15 साल तक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट(IIM Ahmedabad), जो कि मुल्क के सबसे मुअज़्ज़िज़ तिजारती तालीम इदारों में है, में बतौर गेस्ट फैकल्टी (Guest Faculty) पढ़ाया है। उद्यमिता (Entrepreneurship) का मज़मून, उनकी पढ़ाई का खास मरकज़ रहा, जिसमे उन्होंने मुल्क के सबसे रौशन ज़हनों की रहनुमाई और हौसला अफ़ज़ाई की।
उनकी मज़हबी शख्सियत का सबसे मुमताज़ पहलू ये है कि उनको क़ौमी यकजहती और उसकी समझ के अलंबरदार के तौर पर ख़ासी मक़बूलियत हासिल है। उनको अनेक पंथों जैसे, हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई और अनेक धार्मिक संस्थाओं से इज़्ज़त के साथ दिली मोहब्बत भी हासिल होती है।
वर्ष 2011 में, अल्लामा सैय्यद तारिक़ साहब ने मुसलमानों की एक टीम की रहनुमाई महाकुम्भ में करके एक तारीख़ रची। महाकुम्भ, जो कि हिन्दू भाइयों का एक ख़ास समारोह था , का इंतेज़ाम, गायत्री परिवार उत्तर प्रदेश के हरिद्वार में था। उसमे लगभग 50 लाख लोग थे । अल्लामा अब्दुल्लाह तारिक़ साहब मुसलमानों की टीम के साथ एक रथ(bus) लेकर हज़ारों हिन्दू भाइयों के बीच एक आतिशी माहौल में निकले और रहनुमाई फरमाई।
अल्लामा अब्दुल्लाह तारिक़ तारिक़ ने, गायत्री परिवार के इसरार पर एक किताब भी लिखी है "युग परिवर्तन--इस्लामिक दृष्टिकोण"। उनको, साबिक़ वज़ीरे आला श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को, अमन का पैगाम और सनातन धर्म की जानकारी भी पेश करने का मौका मिला।
अल्लामा सैय्यद अब्दुल्लाह तारिक़ साहब ने मुसलमानों के बीच भी इस्लाम के स्वरूप को बदलने की राह में भी बड़ी कामयाबी हासिल की। लगातार चलते डायलॉग, लेक्चर और अदबयात के मज़ामीन पर बात करके, उन्होंने इस्लाम के ज़्यादा वसीय, हमदर्द, अमनपसंद और सांइन्सी नज़रियात का बीज बोया है।
अल्लामा सैय्यद अब्दुल्लाह तारिक़ साहब का समाजी तक़ाज़ों में शराकत के जुनून ने मुल्क की सतह पर लोगों को चौकाया है। 2003 के नंदीग्राम नरसंहार (जम्मू-कश्मीर) के वक़्त उन्होंने उस जगह का दौरा किया और मज़लूम 20 ब्रामण घरानों की तरफ मदद और हमदर्दी का हाथ बढ़ाया। उस वक़्त किसी और तंज़ीम में ये हिम्मत न थी कि उन खतरनाक हालात में उस इलाके का रुख करता।
कश्मीर में दहशतगर्दी के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों में वो सबसे आगे थे। 1998 में पूंछ ज़िले में उनको सुनने के लिए बड़ा मजमा इकट्ठा हुआ था, जब उन्होंने बड़ी दिलेरी के साथ दहशतगर्दी के खिलाफ जंग का ऐलान किया था। जबकि ख़बर ये थी उस मजमे में सैकड़ों की तादाद में हथियार बंद लड़ाके मौजूद थे।
मुल्क की तारीख़ में वो पहले शख्स हैं जिन्होंने, आर्य समाज, सनातन धर्म, ईसाई, बौद्ध, जैन, थियोसोफिकल समाज, इत्यादि से तबादला ए खयाल की शुरुआत की। इसके अलावा, उन्होंने रामपुर, नोयडा, देवबंद में संस्कृत का इल्म हासिल करने के कैम्प शुरू किए। जिसमे बड़ी तादात में उलेमा, मुफ्ती और बुर्का-पोश ख़्वातीनों के झुंड ने संस्कृत का इल्म हासिल करने के लिए बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया
अल्लामा सैय्यद अब्दुल्लाह तारिक़ साहब ने "World Organization of Religion and Knowledge (WORK)" नाम की तंज़ीम का क़याम, दावत के काम को बढ़ावा देने के मकसद से किया। 2007 में WORK अकेली मुस्लिम तंज़ीम थी जिसे इलाहाबाद के कुम्भ मेला में स्टाल लगाने इजाज़त मिली थी।
अल्लामा अब्दुल्लाह तारिक़ साहब की कोशिशों के नतीजे में अयोध्या के "रामायणं ट्रस्ट" ने उन्हें "राम किंकर" अवार्ड से सम्मानित किया, और वो अकेले मुस्लिम बने जिनको ये अवार्ड मिला। इसके अलावा वो "सर्व धर्म एकता मंच" के सेक्रेटरी की ज़िम्मेदारी के साथ, East West Educational and Cultural Society के सेक्रेटरी, Forum for Religious Understanding, Rampur के सेक्रेटरी और ट्रस्टी, मशहूर Veda and Qur'an Research Institute, Ahmedabad के सरपरस्त की ज़िम्मेदारी भी अपने कंधों पर उठाए हुए हैं।
2002 के गुजरात दंगों के बाद उन्होंने, वॉलंटियरों की अपनी टीम के साथ वहां जाकर इलाके में काम किया और बड़ी तादाद में बेसहारा बच्चों को बेहतर मुस्तक़बिल के लिए दूसरे मुक़ामात पर मुंतकिल करने में मदद की।
अल्लामा साहब के क़लम से निकली कई किताबें बहोत मशहूर हैं, जिनमे "अगर अब भी न जागे तो" मूसलमानों के सामने सनातन धर्म को एक नई रोशनी में दिखने की एक इंकिलाबी कोशिश है। "वेद और क़ुरआन-कितने दूर कितने पास" वेद और क़ुरआन के मुक़ाबली तहक़ीक़ की कोशिश है। "वही एक एकता का आधार" वेद और क़ुरआन में यकजू पहलुओं पर गहरी रोशनी डालती है।
उन्होंने दीन के अनेक पहलुओं पर बड़ी तादात में इल्मी कामों को मुरत्तब करने का भी बड़ा कारनामा अंजाम दिया। उनकी अनेक किताबें इस्लाम और हिन्दुइस्म के कई तसव्वुरात को वाज़ेह करने का काम भी बखूबी करती हैं। "गवाही", "शांति पैग़ाम", "इस्लाम का स्वरूप" और "गुजरात के बाद हालात और हल" इन कोशिशों में अहम मील के पत्थर हैं।
https://www.youtube.com/user/syedabdullahtariq
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